हेलो दोस्तों मै आपको इस लेख के माध्यम से हिंदी ग्रामर के स्वर , व्यंजन और वर्तनी के बारे में बताऊंगा | हम सुरु से स्कूल में पढ़ते आये है फिर भी हमें कही न नहीं डाउट रह जाता है की किसे कहते है
स्वर, व्यंजन और वर्तनी वर्णों के विभाजन को दर्शाने वाले भाषा विज्ञान के प्रमुख तत्व हैं।
1. स्वर (vowels) किसे कहते है ?
स्वर वर्ण ध्वनिमात्रा के रूप में ज्ञात होते हैं और इन्हें बिना किसी रोक लगाए बोला जा सकता है। हिंदी में, उदाहरण के तौर पर, अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं आदि स्वर हैं। स्वर वर्णों को सुनने और उच्चारण करने के लिए हमारे मुख में कोई भी आवाज़ के बाहरी वाद्य निकट नहीं करता है।
स्वर संयोजन के बिना उच्चारित नहीं किए जा सकते हैं। स्वर ध्वनि में बिना किसी प्रतिबंध के निकलते हैं और उच्चारित करने के लिए मुख की जीभ, होंठ, और उच्चारण स्थानों को प्रभावित करते हैं। हिंदी में उदाहरण के रूप में, अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ इत्यादि स्वर हैं।
स्वरों का उच्चारण की दृश्टि से कितने प्रकार में विभाजित किया गया है : –
उच्चारण स्थान की दृस्टि से स्वरों को ३ वर्गो में विभाजित किया जा सकता है
1. अग्र स्वर जिन स्वरों के उच्चारण में जिहा का अग्र भाग ऊपर उठता है अग्र स्वर कहलाता है जैसे
इ ,ई ,ए ,ऐ
2. मध्य स्वर जिन स्वरों के उच्चारण में जिहा सामान अवस्था में रहती है मध्य स्वर कहलाते है जैसे अ
3. पश्च स्वर जिन स्वरों के उच्चारण में जिहा का पश्च भाग ऊपर उठता है पश्च स्वर कहलाता है ।
जैसे कि – आ , उ , ओ ,औ ।
इसके अलावा अं और अ: ध्वनिया है ये ना तो स्वर है ना हि व्यंजन है। आचार्य किशोरीदास बाजपेयी ने इन्हे आयोगवाह कहा है, क्योकि ये बिना किसी से योग किये ही अर्थ वहन करते है।हिंदी वर्ण मला मे इनका स्थान स्वरों के बाद और व्यंजनों के पहले निर्धारित किया गया है। एक हि स्थान से बोले जाने वाले स्वरों को सजातीय स्वर कहा जाता है तथा विभिन्न स्थानों से बोले जाने वाले स्वर को विजातीय स्वर कहते हैं।
स्वर दो प्रकार के होते है 1. मूल स्वर , 2. संधि स्वर
1. मूल स्वर – वे स्वर जिनके उच्चारण में कम से कम समय लगता है , अर्थात जिनके उच्चारण में अन्य स्वरों की सहायता नहीं लेनी पड़ती है , मूल स्वर या हस्व स्वर कहलाते है ; जैसे – अ ,इ ,उ ,ऋ |
२. संधि स्वर: संधि स्वर वे स्वर होते हैं जो दो या अधिक वर्णों की संधि के परिणामस्वरूप उच्चारित होते हैं। हिंदी में, जब दो वर्णों की संधि होती है, तो इससे एक नया स्वर उत्पन्न होता है जो मूल स्वरों के बीच में आता है। उदाहरण के लिए, “आ + ए = ऐ” और “आ + ओ = औ”। इन संधि स्वरों को दो मात्राओं की संधि द्वारा उत्पन्न किया जाता है और इन्हें विभिन्न शब्दों के उच्चारण में स्थानांतरित किया जाता है।
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संधि स्वर कितने प्रकार के होते है ?
संधि स्वर (Sandhi Swar) की विभिन्न प्रकार होते हैं। ये स्वर ध्वनियों के मेल द्वारा शब्दों के एक से दूसरे में होने वाले व्याकरणिक परिवर्तन को दर्शाते हैं।
निम्नलिखित हैं कुछ प्रमुख संधि स्वर के प्रकार:
1.दीर्घ स्वर : वे स्वर जो सजातीय स्वरों के संवोग से निर्मित हुए है दीर्घ स्वर कहलाते है जैसे
अ + अ = आ
इ + ई = ई
उ + ऊ = ऊ
2.सन्युक्त स्वर : वे स्वर जो विजातीय स्वरों के संयोग से निर्मित हुए है ,संयुक्त स्वर कहलाते है ।
अ + इ = ए
अ + ए = ऐ
ये प्रमुख संधि स्वर के प्रकार हैं, जिन्हें हिंदी व्याकरण में प्रयोग किया जाता है।
2. व्यंजन (consonants) किसे कहते है ?
व्यंजन वर्ण ध्वनि मात्राओं के रूप में ज्ञात होते हैं और इन्हें आवाज़ को बाहरी वाद्य के बिना उच्चारण नहीं किया जा सकता है। हिंदी में, उदाहरण के तौर पर, क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ, ट, ठ, ड, ढ, त, थ, द, ध, प, फ, ब, भ, य, र, ल, व, श, ष, स, ह, क्ष, त्र, ज्ञ आदि व्यंजन होते हैं। ये वर्ण विभिन्न स्थानों पर उच्चारण किए जाते हैं और आवाज़ के बाहरी वाद्य तत्वों का उपयोग करते हैं।
व्यंजन ध्वनि को उच्चारित करने के लिए वश में आते हैं। ये ध्वनियाँ मुख में जीभ, होंठ, दंत, तालू, मूख आदि के संरचना द्वारा उत्पन्न होती हैं।
व्यंजन कितने प्रकार के होते है ?
व्यंजन (Vyanjan) के कई प्रकार होते हैं। व्यंजन ध्वनियाँ मुख द्वारा उत्पन्न की जाती हैं और इसमें मुख के विभिन्न भूमिकाओं का प्रयोग होता है।
हिंदी भाषा में निम्नलिखित प्रमुख व्यंजन के प्रकार होते हैं:
1. स्वर युक्त व्यंजन (Swar Yukta Vyanjan): इन व्यंजनों के साथ स्वर (वोयल) जुड़ता है। उदाहरण के लिए, क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ, ट, ठ, ड, ढ आदि।
2. स्वरहीन व्यंजन (Swarheen Vyanjan): इन व्यंजनों में कोई स्वर नहीं होता है। उदाहरण के लिए, क्, ट्, ख्, ष्, य् आदि।
3. नासिक्य व्यंजन (Nasikya Vyanjan): इन व्यंजनों के उच्चारण के लिए नाक का प्रयोग होता है। उदाहरण के लिए, च, छ, ज, झ, ञ आदि।
4. तालव्यंजन (Taalavyanjan): इन व्यंजनों के उच्चारण के लिए जीभ का प्रयोग होता है। उदाहरण के लिए, त, थ, द, ध, न आदि।
5. दंत्य व्यंजन (Dantya Vyanjan): इन व्यंजनों के उच्चारण के लिए दांतों का प्रयोग होता है। उदाहरण के लिए, त, थ, द, ध, न आदि।
6. ओष्ठ्य व्यंजन (Osthya Vyanjan): इन व्यंजनों के उच्चारण के लिए होंठों का प्रयोग होता है। उदाहरण के लिए, प, फ, ब, भ, म आदि।
7. कांण्ड्य व्यंजन (Kandya Vyanjan): इन व्यंजनों के उच्चारण के लिए गले का प्रयोग होता है। उदाहरण के लिए, क, ख, ग, घ, ङ आदि।
8.मूर्धन्य (Murdhanya): जब जीभ को मुख के मस्तिष्क या मुख के ऊपरी हिस्से के साथ लगाया जाता है, तो मूर्धन्य व्यंजन उत्पन्न होता है। उदाहरण के लिए, ‘क्ष’, ‘ज्ञ’ मूर्धन्य व्यंजन हैं।
ये हैं कुछ प्रमुख व्यंजन के प्रकार, जो हिंदी भाषा में प्रयोग होते हैं। इसके अलावा भी व्यंजनों के अन्य प्रकार भी हो सकते हैं, जो भाषा विज्ञान के अन्तर्गत अध्ययन किए जाते हैं।
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3. वर्तनी (spelling) किसे कहते है ?
वर्तनी शब्दों के लेखनिक रूप को दर्शाती है। यह शब्दों के वर्णों और ध्वनियों के व्यवस्था के संबंध में होती है। वर्तनी में सही अक्षरों, मात्राओं, स्वरों, व्यंजनों और अनुस्वारों का उपयोग करके शब्दों को सही ढंग से लिखा जाता है। हिंदी में, वर्तनी नियमों के अनुसार, शब्दों के वर्ण और ध्वनि स्थानों का सही उपयोग करके शब्दों को लिखा जाता है।
वर्तनी शब्दों के लिए उपयोग किया जाता है और यह शब्दों की ठीक ढंग से लिखी गई रूपरेखा है। वर्तनी शब्दों को सही ढंग से लिखने के लिए वर्तनी नियमों और विधियों का पालन करना आवश्यक होता है। वर्तनी का सही ज्ञान शब्दों के वाचन, लेखन, और बोलचाल में महत्वपूर्ण होता है।
वर्तनी भाषा के नियमों को व्यक्त करने वाले वर्ण होते हैं। ये वर्ण शब्दों के बनावटी अंश को दर्शाते हैं और शब्दों की सही ढंग से उच्चारण को सुनिश्चित करते हैं। उदाहरण के लिए, वर्तनी में अंग्रेजी भाषा में “कैट” को “cat” लिखा जाता है, जहां वर्तनी अंश “ca-” को दिखाता है कि यह ध्वनि के बाद आने वाला ध्वनि को नकारता है।
ये तीनों माध्यम भाषा में शब्दों की उत्पत्ति, अभिव्यक्ति और समझ के महत्वपूर्ण पहलु हैं।
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