हेल्लो दोस्तों क्या आपको भी क्रिया की परिभाषा और भेद, अव्यय तथा क्रिया-विशेषण के बारे मे नहीं पता। क्या आप भी इसके कितने प्रकार है, ये नहीं जानते तो आप सही आर्टिकल मे आये है

क्रिया(verb) : —
जिस शब्द से किसी कार्य के होने की भावना प्रकट हो, उसे क्रिया कहा जाता है, जैसे -पढ़ना, लिखना, चलना इत्यादि। क्रिया विकारी शब्द है, जिसके रूप लिंग, वचन तथा पुरुष के अनुसार बदलते हैं। क्रिया के रूप में यह परिवर्तन हिन्दी की अपनी विशेषता है। क्रिया का मूल ‘धातु’ है।धातु क्रिया पद के उस अंश को कहते हैं, जो प्रायः सभी रूपों में अपनी उपस्थिति दर्शाता है। वस्तुतः जिन मूल अक्षरों से क्रिया का निर्माण होता है, उन्हें धातु कहते हैं; जैसे ‘पढ़ना’ क्रिया में ‘पठ्’ धातु के साथ ‘ना’ प्रत्यय लगा है। हिन्दी में क्रिया का निर्माण धातुओं के अतिरिक्त संज्ञा तथा विशेषण से भी होता है।
रचना की दृष्टि से क्रिया के दो भेद हैं
1. सकर्मक
2. अकर्मक
1.सकर्मक क्रिया
सकर्मक क्रिया, उस क्रिया को कहते हैं, जिसका फल कर्ता पर न पड़ कहीं और पड़े। सकर्मक क्रिया के साथ ‘कर्म’ रहता है या उसके रहने की सम्भावना होती है, जैसे राम खाना खाता है। इस वाक्य में क्रिया का फल ‘भोजन‘ पर पड़ता है जो प्रत्यक्षतः उपस्थित नहीं है। ‘जाता है‘ के साथ यदि गन्तव्य स्थल की चर्चा वाक्य में नहीं होती है, तब न भी फल, घर, विद्यालय आदि शब्दों पर पड़ता है। ऐसी क्रियाएँ सकर्मक‘ होती हैं।
2.अकर्मक क्रिया
जिस क्रिया के कार्य का फल कर्ता पर पड़े, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। अकर्मक क्रिया के साथ कोई कर्म कारक नहीं होता है। इस कारण इसे अकर्मक क्रिया कहते हैं; जैसे मोहन हँसता है। ‘हँसने’ या ‘रोने’ की क्रिया का फल- कर्ता पर पड़ता है।
कतिपय ऐसी क्रियाएँ हैं जो अकर्मक तथा सकर्मक दोनों होती हैं, यह निर्धारण वाक्य में उनके प्रयोग द्वारा होता है। इन्हें उभयविध धातु भी कहते हैं।
जैसे मेरा जी घबराता है। (घबराना (क्रिया)—सकर्मक)
मुसीबत में सभी घबराते हैं। (घबराना (क्रिया)-अकर्मक)
अकर्मक क्रिया में उ, ना और आना, प्रत्यय लगाकर सकर्मक क्रिया बनाया जाता है।
जैसे रोना (अकर्मक) – रुलाना (सकर्मक)
उड़ना (अकर्मक) – उड़ाना (सकर्मक)
कटना (अकर्मक) काटना (सकर्मक)
अकर्मक क्रिया के धातुओं को उकार, ओंकार, इकार तथा एकार में बदलकर तथा अन्त्य में ना प्रत्यय जोड़कर सकर्मक क्रियाएँ बनाई जाती हैं;
जैसे खुलना (अकर्मक) खोलना (सकर्मक)
द्विकर्मक क्रिया
कुछ क्रियाएँ एक कर्म वाली होती हैं जबकि कतिपय दो कर्म वाली होती हैं। ऐसी क्रियाओं को ‘द्विकर्मक क्रिया‘ कहते हैं। जैसे उसने राम को डण्डे से मारा। यहाँ दो कर्म हैं-‘राम को’ और ‘डण्डा’।
संयुक्त क्रिया
जो क्रिया दो या दो से अधिक धातुओं के मेल से बनती है, उसे ‘संयुक्त क्रिया‘ कहते हैं; जैसे वह घर पहुँच गया। इस वाक्य में ‘पहुँच गया’ संयुक्त क्रिया का उदाहरण है। संयुक्त क्रिया का निर्माण अकर्मक तथा सकर्मक दोनों क्रियाओं द्वारा हो सकता है। जैसे लेट जाना, गिर पड़ना, बेच लेना इत्यादि । संयुक्त क्रिया में पहली क्रिया प्रधान होती है तथा बाद वाली क्रिया उसमें विशेषता उत्पन्न करती है; जैसे मैं पढ़ सकता हूँ। इस वाक्य में पढ़ना’ तथा ‘सकना’ दो क्रियाएँ हैं। ‘सकना’ ‘पढ़ना’ क्रिया की विशेषता उत्पन्न करती है।
सहायक क्रिया
मुख्य क्रिया के अर्थ को स्पष्ट करने में सहायता करने वाली क्रिया को ‘सहायक क्रिया‘ कहा जाता है; जैसे उसने बाघ को मार डाला। ‘मारना’ इस वाक्य में मुख्य क्रिया है, जिसके अर्थ को स्पष्टता प्रदान करने वाली क्रिया ‘डालना’ है। है, थे, हुए, रहे इत्यादि सहायक क्रियाएँ हैं।
वाच्य किसे कहते है ?
क्रिया के जिस रूप परिवर्तन से यह पता चले कि वाक्य में क्रिया के व्यापार का मुख्य विषय कर्ता, कर्म या भाव है, तब उसे वाच्य (Voice) कहते हैं।
वाच्य के कितने भेद है –
वाच्य के तीन भेद हैं
1. कर्तृवाच्य 2. कर्मवाच्य 3. भाववाच्य।
क्रिया के जिस रूप परिवर्तन से वाक्य में कर्ता की प्रधानता स्पष्ट हो उसे ‘कर्तृवाच्य‘ कहते हैं, जैसे वह आम खाता है। यहाँ कर्ता प्रधान है। क्रिया के जिस रूप परिवर्तन से वाक्य में कर्म की प्रधानता स्पष्ट हो उसे ‘कर्मवाच्य’ कहते हैं;
जैसे :- आम खाया जाता है।
क्रिया के जिस रूप परिवर्तन से वाक्य में भाव की प्रधानता दिखाई दे, उसे भाववाच्य कहते हैं, जैसे उससे खाया ही नहीं गया।
अव्यय किसे कहते है
ऐसे शब्द जिसके रूप में लिंग, वचन, पुरुष, कारक इत्यादि में परिवर्तन के बावजूद कोई विकार उत्पन्न नहीं होता, अव्यय कहते हैं; जैसे राम धीरे-धीरे जाता है। यहाँ ‘धीरे-धीरे’ अव्यय है।
ऐसे शब्दों में किसी भी परिस्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होता। इसलिए ये शब्द अविकारी होते हैं। अव्यय शब्दों के कुछ उदाहरण निम्न हैं जब, तब, अभी, इधर, उधर, इसलिए, अतः, ठीक, अर्थात्, इत्यादि। अव्यय के अन्तर्गत क्रिया-विशेषण सम्बन्धबोधक समुच्चयबोधक तथा विस्मयादिबोधक शब्दों का स्थान है। सामान्य रूप से अव्यय के यही चार भेद भी हैं।
अंग्रेजी की तरह हिन्दी में सभी क्रिया विशेषण शब्दों को अव्यय नहीं माना गया है। बहुत-से शब्द क्रिया की विशेषता नहीं बताते।
कालवाचक अव्यय – आज, कल, आगे, पीछे स्थानवाचक–यहाँ, वहाँ
दिशावाचक – इधर, उधर
स्थितिवाचक – नीचे, ऊपर ऐसे शब्द क्रिया की विशेषता नहीं बताते।
क्रिया विशेषण किसे कहते है
जिस शब्द से क्रिया, विशेषण तथा अन्य क्रिया-विशेषण शब्दों की विशेषता प्रकट हो उसे क्रिया–विशेषण कहते हैं। जैसे :-
सीता धीरे-धीरे आ रही है।
श्याम अभी खा रहा है।
इन वाक्यों में ‘धीरे-धीरे’ तथा ‘अभी’ ‘आने’ तथा ‘खाने’ की क्रिया की विशेषता बताते हैं।
वह बहुत धीरे चलता है।
उपर दिये गए इस वाक्य में ‘बहुत‘ क्रिया-विशेषण है क्योंकि वह वाक्य में उपस्थित ‘धीरे‘ , यह शब्द क्रिया -विशेषण की विशेषता बतलाता है।
1. प्रयोग के आधार पर क्रिया–विशेषण के तीन भेद हैं :- साधारण, संयोजक तथा अनुबद्ध ।
a.साधारण क्रिया-विशेषण
वाक्य में स्वतन्त्र रूप से प्रयुक्त क्रिया-विशेषण को ‘साधारण क्रिया–विशेषण‘ कहते हैं; जैसे जल्दी आ जाओ। यहाँ ‘जल्दी’ स्वतन्त्र रूप से वाक्य में प्रयुक्त हुआ है।
b.संयोजक क्रिया-विशेषण
जिन क्रिया-विशेषणों का सम्बन्ध किसी उपवाक्य से रहता है, उन्हें ‘संयोजक क्रिया–विशेषण‘ कहा जाता है, जैसे जहाँ अभी महल है, वहाँ जंगल था।
c.अनुबद्ध क्रिया-विशेषण
वाक्य में प्रयुक्त होकर निश्चय (अवधारण) का बोध कराने वाले क्रिया-विशेषण शब्द को ‘अनुबद्ध क्रिया–विशेषण‘ कहते हैं।
2. रूप के आधार पर क्रिया :- विशेषण को तीन भागो में बाँटा जाता है। जैसे- मूल, यौगिक तथा स्थानीय।
A.मूल क्रिया :- विशेषण दूसरे शब्दों के मेल से नहीं बनते। जैसे ठीक, अचानक, नहीं इत्यादि।
B.यौगिक क्रिया :- विशेषण शब्द प्रत्यय अथवा पद जोड़ने से बनते हैं। जैसे मन से, जिस से, भूल से इत्यादि ।
C.स्थानीय क्रिया :- विशेषण बिना रूपान्तरण के किसी विशेष स्थान में आते हैं; जैसे क्यों अपना सिर खपाते हो?
3. अर्थ के अनुसार से क्रिया :- विशेषण के दो भेद हैं- परिमाण बोधक तथा रीतिबोधक |
परिमाणवाचक क्रिया विशेषण को अधिकताबोधक, न्यूनताबोधक, पर्याप्तिवाचक, तुलनावाचक और श्रेणीवाचक, ये पांच उपभेदों में बाँटा जाता है।
(क) अधिकताबोधक के उदाहरण :- बहुत, अति, बड़ा, बिल्कुल, सर्वथा इत्यादि।
(ख) न्यूनताबोधक के उदाहरण :- कुछ, लगभग, थोड़ा, जरा इत्यादि।
(ग) पर्याप्तिवाचक के उदाहरण :- केवल, बस, बराबर, ठीक इत्यादि ।
(घ) तुलनावाचक के उदाहरण :- जितना, कितना, इतना, अधिक, कम इत्यादि ।
(ङ) श्रेणीवाचक के उदाहरण :- थोड़ा-थोड़ा, तिल-तिल इत्यादि ।
रीतिवाचक क्रिया किसे कहते है –
विशेषण गुणवाचक विशेषण से जुड़ते हैं। यह क्रिया-विशेषण प्रकार, निश्चय, अनिश्चय, स्वीकार, कारण, निषेध, अवधारण जैसे अर्थों में आते हैं।
(क)प्रकार :- कैसे, स्वयं, स्वतः, मानो इत्यादि ।
(ख)निश्चय :- अवश्य, सही, सचमुच इत्यादि ।
(ग)अनिश्चय :- कदाचित, शायद, यथासम्भव इत्यादि ।
(घ)स्वीकार :- हाँ, जी, ठीक, सच इत्यादि ।
(ङ)कारण :- इसलिए, क्यों, काहे इत्यादि ।
(च)निषेध :- न, नहीं, मत इत्यादि ।
(छ)अवधारण :- तो, भी, मात्र इत्यादि ।